बच्‍चे के डिप्रेशन को नजरंदाज तो नहीं कर रहे आप

बच्‍चे के डिप्रेशन को नजरंदाज तो नहीं कर रहे आप

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन यानी डब्‍ल्‍यूएचओ की मानें तो भारत किशोरावस्‍था में किए जा रहे आत्‍महत्‍या के मामले में दक्षिण एशिया के 10 देशों में चोटी पर है। यही नहीं यहां पर 13 से 15 वर्ष उम्र का हर चार में से एक बच्‍चा किसी न किसी वजह से डिप्रेशन में है। किशोर वय का यह डिप्रेशन एक गंभीर मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य अवस्‍था है जिसके कारण बच्‍चा हमेशा दुखी रहता है और किसी भी तरह की गतिविधि में दिलचस्‍पी खो बैठता है।

बच्‍चों में डिप्रेशन की वजह

कई अध्‍ययनों से यह निष्‍कर्ष निकला है कि ऐसे बच्‍चे जो किसी न किसी प्रकार की आक्रामकता झेलते हैं उनमें किशोरावस्‍था में गंभीर मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की समस्‍या से ग्रस्‍त होने का जोखिम बढ़ जाता है। इन समस्‍याओं में आत्‍महत्‍या की प्रवृत्ति और एंजाइटी शामिल है। ऐसे बच्‍चे जो अपने हमउम्रों के द्वारा गंभीर रूप से प्रताड़ि‍त किए गए हों उनमें 15 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते डिप्रेशन का शिकार हो जाने का खतरा दो गुना बढ़ जाता है जबकि किसी न किसी तरह की एंजाइटी की चपेट में आने का जोखिम तो तीन गुना ज्‍यादा हो जाता है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्‍यक्ष पद्मश्री डॉक्‍टर के.के. अग्रवाल कहते हैं कि साथियों की प्रताड़ना, बड़ों द्वारा डराना-धमकाना, पढ़ाई का प्रेशर और उसी के साथ हो रहे शारीरिक बदलाव तेजी से बढ़ते बच्‍चों के लिए सहन करने से ज्‍यादा दबाव डाल सकते हैं। आमतौर पर यह अस्‍थाई दौर होता है और उम्र बढ़ने के साथ बच्‍चे इन सबसे निपटना सीख भी जाते हैं मगर कुछ बच्‍चों में यह दौर अस्‍थाई नहीं रह जाता है और उनमें डिप्रेशन के लक्षण दिख सकते हैं। किशोरावस्‍था में यह आम समस्‍या नहीं है। इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं और इसके इलाज में लंबा समय लग सकता है। यदि इसका समय पर इलाज नहीं हुआ तो यह बच्‍चे की जिंदगी के हर हिस्‍से पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। बच्‍चों में डिप्रेशन के कुछ मामले शराब और ड्रग्‍स से जबकि कुछ पारिवारिक समस्‍याओं और रिश्‍तों की जटिलताओं से जुड़े होते हैं और ऐसे मामले आत्‍महत्‍या का जोखिम बढ़ा देते हैं।

बच्‍चे पर पड़े दबाव को कैसे पहचानें

यदि आपका हमेशा हंसता-खेलता रहने वाला बच्‍चा अचानक कुछ दिन से गुमसुम हो जाए, घर से बाहर निकलने के लिए मना करने लगे, खाना-पीना कम कर दे और ऐसा कोई व्‍यवहार करे जो बच्‍चे का सामान्‍य व्‍यवहार नहीं है तो समझ लें कि ऐसा कुछ घट रहा है या घटा है जो नहीं होना चाहिए। अगर बच्‍चा अचानक चिड़चिड़ा हो जाए तब भी उसके पीछे की वजह जानने की कोशिश करनी चाहिए।

कैसे संभाले स्थिति को

हर डॉक्‍टर और परामर्शदाता ये बात कहते हैं कि बच्‍चे फूल की तरह होते हैं। इस बात को सच मानें। बच्‍चे के व्‍यवहार में किसी भी तरह का बदलाव होने पर उसके साथ ज्‍यादा से ज्‍यादा समय बिताना शुरू करें और दबाव डालकर नहीं बल्कि धीरे-धीरे प्‍यार से उस वजह का पता लगाएं जिसके कारण बच्‍चे का व्‍यवहार बदला है। एक बार वजह पता लगने पर उस कारण को दूर करने में भी समझदारी दिखानी होती है। अगर उस समस्‍या से निबटने का सही तरीका आप खुद ही बच्‍चे को समझाएं तो बच्‍चा उस समस्‍या से निबट भी लेगा और भविष्‍य के लिए एक सबक भी सीख लेगा। आमतौर पर माता-पिता बच्‍चे की समस्‍या को खुद पर ले लेते हैं, ऐसा करना उचित नहीं है। हां समस्‍या अगर ऐसी है जिसमें मां-बाप ही नहीं समाज का दखल भी जरूरी है तो फ‍िर उसी तरह का कदम उठाना चाहिए।

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